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एम्स, ऋषिकेश के तत्वावधान में स्पिक मैके संस्था का कलारीपयट्टू कार्यक्रम का किया गया आयोजन, इसमे किया गया केरल की प्राचीन मार्शल आर्ट का प्रदर्शन।

एम्स, ऋषिकेश के तत्वावधान में स्पिक मैके संस्था का कलारीपयट्टू कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें केरल की प्राचीन मार्शल आर्ट का प्रदर्शन किया गया।

कार्यक्रम के माध्यम से कलारीपयट्टू की गतिविधियों, हथियारों और युद्ध तकनीकों का गतिशील प्रदर्शन किया गया, इस दौरान उपस्थित दर्शक शारीरिक कौशल और सांस्कृतिक विरासत के सामुहित प्रदर्शन से रूबरू हुए।
संस्थान परिसर में आयोजित कार्यक्रम का मुख्य अतिथि केरल के प्रसिद्ध कलारीपयट्टू मास्टर राजीव के.पी. ने विधिवत उद्घाटन किया। इस दौरान उन्होंने इस मार्शल आर्ट के इतिहास और सामाजिक महत्व की जानकारी साझा की।
इसके पश्चात प्रतिभागियों ने रूटीन कार्यक्रमों की एक श्रृंखला प्रदर्शित की, जिसमें स्ट्राइक, किक, ग्रैपलिंग और उरुमी (लचीली तलवार) और पारंपरिक हथियारों के उपयोग सहित कलारीपयट्टू मार्शल आर्ट से जुड़ी विभिन्न तकनीकों में अपने कौशल का शानदार प्रदर्शन किया।
इस अवसर पर मार्शल आर्ट प्रदर्शनों के अलावा, इंटरैक्टिव कार्यशालाओं का आयोजन भी किया गया, जिससे प्रतिभागियों को बुनियादी कलारीपयट्टू चालें सीखने और इसमें शामिल अनुशासन और प्रशिक्षण को समझने का मौका मिला। कार्यशालाओं में प्रतिभागियों के कला कौशल प्रदर्शन की मौजूद लोगों व विशेषकर छात्रों ने प्रशंसा की।
इस अवसर पर संस्थान की कार्यकारी निदेशक एवं सीईओ प्रोफेसर (डॉ.) मीनू सिंह ने पारंपरिक भारतीय मार्शल आर्ट को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के महत्व पर जोर दिया, इस बात पर जोर दिया कि किस तरह से कलारीपयट्टू न केवल शारीरिक फिटनेस को बढ़ाता है बल्कि अनुशासन, ध्यान और सांस्कृतिक गौरव भी पैदा करता है। डीन एकेडमिक प्रो. जया चतुर्वेदी ने कहा कि नई पीढ़ी को इस तरह की पारंपरिक कलाओं को आत्मसात करने और उन्हें आगे बढ़ाने की आवश्यकता है जिससे उनका संरक्षण हो सके।
समापन समारोह में संस्थान की कार्यकारी निदेशक प्रो. मीनू सिंह अन्य अतिथियों ने मार्शल आर्ट के प्रतिभागी प्रदर्शनकारियों को उनके शानदार प्रदर्शन के लिए प्रशस्ति पत्र प्रदान किए गए।
कार्यक्रम समन्वयक प्रो. गीता नेगी व डॉ. वंदना धींगरा ने बताया कि इस आयोजन के माध्यम से कलारीपयट्टू मार्शल आर्ट के अभ्यास के साथ साथ हमें आधुनिक फिटनेस के साथ इसकी प्रासंगिकता पर भी गौर करने की आवश्यकता है।

वहीं उन्होंने बताया कि यह ऊर्जा, सीखने और सांस्कृतिक आदान-प्रदान से परिपूर्ण कार्यक्रम है। जिसने सभी दर्शकों में अपनी अमिट छाप छोड़ी है।

इस अवसर पर प्रोफेसर लतिका मोहन, प्रो. प्रशांत पाटिल, प्रो. शालिनी राजाराम आदि मौजूद रहे।

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