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भारत बना विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, अब हथकरघा-हस्तशिल्प बनेगा रीढ़: उत्तराखंड की हर्बल ऊन को वैश्विक पहचान दिलाने की पहल।राज्यमंत्री वीरेंद्र दत्त सेमवाल की सीमांत गांव बगोरी में भेड़ पालकों से संवाद।

भारत बना विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, अब हथकरघा-हस्तशिल्प बनेगा रीढ़: उत्तराखंड की हर्बल ऊन को वैश्विक पहचान दिलाने की पहल**
*राज्यमंत्री वीरेंद्र दत्त सेमवाल की सीमांत गांव बगोरी में भेड़ पालकों से संवाद, मुख्यमंत्री धामी के विज़न को बताया मार्गदर्शक*

**उत्तरकाशी (हर्षिल घाटी):**
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया वक्तव्य—*“भारत अब विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और हथकरघा एवं हस्तशिल्प हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनने जा रहे हैं”*—की भावना को साकार करते हुए उत्तराखंड सरकार भी पारंपरिक कौशल और स्थानीय संसाधनों को वैश्विक मंच देने के लिए तत्पर है।

इसी दिशा में आज उत्तरकाशी के सीमांत गांव बगोरी (हर्षिल घाटी) में माननीय राज्यमंत्री श्री वीरेंद्र दत्त सेमवाल जी द्वारा एक व्यापक जन संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया।
जिला उद्योग केंद्र उत्तरकाशी के सहयोग से आयोजित इस संवाद में भेड़-बकरी पालकों, स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों और विभागीय टीमों के साथ गहन चर्चा की गई।

राज्यमंत्री श्री सेमवाल जी ने स्पष्ट रूप से कहा, *”मेरा सपना है कि प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी जी की अगुवाई में उत्तराखंड की ऊन को ‘हर्बल ऊन’ के नाम से दुनिया में जाना जाए। यहां की भेड़-बकरियां शुद्ध रूप से प्राकृतिक जड़ी-बूटियां खाती हैं।

हमारे पूर्वजों की यह मान्यता रही है—’जैसा अन्न, वैसा मन’। यही कारण है कि हिमालयी ऊन में आत्मिक और औषधीय स्पर्श है, जिसे वैश्विक स्तर पर ले जाना हमारी प्राथमिकता है।”*

**हर्बल ऊन: संस्कृति और नवाचार का समन्वय**
जहां वैश्विक बाज़ार अब ‘सस्टेनेबल फैशन’ और ‘इको-फ्रेंडली’ उत्पादों की ओर झुकाव दिखा रहा है, वहीं उत्तराखंड की यह हर्बल ऊन एक अद्भुत नवाचार के रूप में उभर सकती है। यह न केवल पारंपरिक शिल्प का प्रतीक है, बल्कि शरीर, स्वास्थ्य, मन और पर्यावरण के बीच संतुलन का भी प्रतीक बन सकती है।

मंत्री जी ने कहा कि ऊन से बनने वाले उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय डिज़ाइनरों, टेक्सटाइल नवप्रवर्तकों और उद्यमियों के सहयोग से नए रूप और बाज़ार दिए जाएंगे। पारंपरिक हुनर और आधुनिक डिज़ाइन का संगम उत्तराखंड की इस सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक मानचित्र पर स्थापित करेगा।

**आत्मनिर्भर भारत की ओर सीमांत प्रयास**
कार्यक्रम में मानसखंड स्वावलंबन फाउंडेशन के निदेशक डॉ. दिनेश उपमन्यु जी, जिला उद्योग केंद्र की महाप्रबंधक श्रीमती शैली डबराल, पशुपालन और राजस्व विभाग की टीमें, ग्राम प्रधान एवं अनेक भेड़ पालक शामिल रहे।

संवाद के दौरान मंत्री जी ने सभी संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिए कि योजनाओं का लाभ पात्र लाभार्थियों तक पहुंचना सुनिश्चित किया जाए।

यह कार्यक्रम केवल संवाद नहीं था, यह सीमांत क्षेत्र की समृद्ध परंपरा को समकालीन नवाचार से जोड़ने की एक सार्थक और दूरदर्शी पहल थी।

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