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ब्रेकिंग:-एम्स ऋषिकेश में आयोजित कार्यक्रम के दौरान उत्तराखण्ड नियोनेटोलाॅजी सोसाईटी का उद्घाटन, लोगो हुआ लाॅन्च।

एम्स ऋषिकेश में आयोजित कार्यक्रम के दौरान उत्तराखण्ड नियोनेटोलाॅजी सोसाईटी का उद्घाटन कर लोगो लाॅन्च किया गया।

कहा गया कि सोसाईटी के गठन से राज्य स्तर पर नवजात शिशुओं की देखभाल के लिए नए आयाम खुल सकेंगे।
इस अवसर पर आयोजित सीएमई में नवजात शिशु विशेषज्ञ चिकित्सकों ने नवजात बच्चों की विभिन्न बीमारियों और जटिलताओं पर अपने अनुभव साझा किए।

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उत्तराखंड नियोनेटोलाॅजी सोसाईटी के तत्वावधान में एम्स ऋषिकेश में आयोजित कार्यक्रम के दौरान सोसाईटी का लोगो लाॅन्च कर नवजात शिशु विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा प्रत्येक दो माह में सीएमई के नियमित आयोजन की बात कही गई।

कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए संस्थान की कार्यकारी निदेशक और मुख्य अतिथि प्रोफेसर (डा. ) मीनू सिंह ने कहा कि पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण उत्तराखंड में ट्रांसपोर्ट की समस्या हमेशा बनी रहती है। साथ ही राज्य में स्वास्थ्य सुविधाएं भी पर्याप्त स्तर पर उपलब्ध नहीं हैं।

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प्रो. मीनू सिंह ने सस्टेनेबेल डेवलपमेन्ट गोल्स एसडीजी सतत विकास लक्ष्य के तहत एकल संख्या नवजात शिशु मृत्यु दर को हासिल करने के बारे में उपाय साझा किए।

जहां देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों में नवजात शिशु मृत्यु दर बहुत कम है हमें उन राज्यों के प्रावधानों और स्वास्थ्य योजनाओं का अनुसरण करने की आवश्यकता है।

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प्रोफेसर (डा.) मीनू सिंह ने कहा कि एम्स ऋषिकेश से संचालित टेलिमेडिसिन सुविधा और ड्रोन की मदद से दूर-दराज के क्षेत्रों में दवा पहुंचाने की व्यवस्था राज्य में नवजात शिशु मृत्यु दर को कम करने में कारगर सिद्ध होगी।

विशिष्ट अतिथि हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साईंस के डीन प्रो. अशोक देवराड़ी ने कहा कि सभी को नवजात शिशुओं की हाई क्वालिटी केयर पर फोकस करने की आवश्यकता है।

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उन्होंने कहा कि सोसाईटी के गठन से राज्य में एनएचएम व अन्य संस्थाओं के साथ मिलकर सामुदायिक स्तर पर मातृ शिशु कल्याण के क्षेत्र में बेहतर कार्य किए जा सकेंगे।

इसके लिए उन्होंने जिला चिकित्सालयों, वेलनेस सेन्टरों एवं प्राईमरी हेल्थ केयर सिस्टम के साथ मिलकर टेलिमेडिसिन सेवा का सहयोग लेने की बात कही।

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इससे नवजात शिशुओं को आवश्यक इलाज के लिए उन्हें बड़े अस्पतालों में रेफरेल करने का प्रतिशत कम किया जा सकेगा।

सीएमई में हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साईंस के नियोनेटोलाॅजी विभाग के चिकित्सकों ने समय से पहले पैदा होने वाले प्रीमैच्योर नवजात शिशुओं में होने वाले संक्रमण की समस्याओं और उनके इलाज के दौरान की जटिलताओं का प्रदर्शन कर अपने अनुभव बताए।
जबकि एम्स ऋषिकेश के नियोनेटोलाॅजी विभाग के चिकित्सकों द्वारा नवजात बच्चों की हृदय गति (उच्च नाड़ी दर) की अनियमितता को नियंत्रित करने में आने वाली मेडिकली चुनौतियों और इसकी जटिलताओं के अनुभवों को 5 क्लीनिकल केस के माध्यम से साझा किया गया।

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इससे पूर्व सोसाईटी की अध्यक्ष और एम्स नियोनेटोलाॅजी विभाग की हेड प्रो. श्रीपर्णा बासु ने कहा कि डॉक्टरों और हेल्थ केयर वर्करों की सर्वसम्मति से इस वर्ष जनवरी माह में उत्तराखंड नियोनेटोलॉजी सोसायटी का गठन किया गया था।
सोसाईटी के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया कि सोसायटी का लक्ष्य हेल्थ केयर वर्करों के ज्ञान और कौशल निर्माण के माध्यम से नवजात शिशुओं की स्वास्थ्य देखभाल में राज्य स्तर पर व्यापक सुधार करना है। डाॅ. श्रीपर्णा ने कहा कि सोसाईटी में बाल रोग विशेषज्ञ, नवजात शिशु विशेषज्ञ, प्रसूति विशेषज्ञ और नवजात शिशु विभाग की नर्सें शामिल हैं।

सोसाईटी सचिव डाॅ. राकेश कुमार ने सोसाईटी के गठन का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कर भविष्य के क्रिया-कलापों का ब्यौरा रखा।

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जबकि एम्स के नियोनेटोलाॅजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डाॅक्टर सुमन चैरसिया ने कहा कि सोसायटी को भारत के राष्ट्रीय नियोनेटोलॉजी फोरम के राज्य इकाई के रूप में मान्यता दी गई है जो राज्य को नेशनल नियोनेटोलाॅजी फोरम (एनएनएफ) के मॉड्यूल चलाने में सक्षम बनाएगी।

कार्यक्रम में क्षमता निर्माण के मामलों, अनुसंधान, कार्यशाला के आयोजन आदि विषयों पर चर्चा की गई।

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राज्य के विभिन्न क्षेत्रों नियोनेटोलाॅजी विशेषज्ञ चिकित्सक इस कार्यक्रम में वर्चुअल माध्यम से शामिल हुए। इस दौरान एम्स ऋषिकेश के प्रो. नवनीत भट, श्रीनगर मेडिकल काॅलेज के प्रो. व्यास राठौर, हिमालयन इंस्टीट्यूट से प्रो. गिरीश गुप्ता और प्रो. अनिल रावत ने एक्सपर्ट की भूमिका निभाई।

इस दौरान प्रभारी डीन और फार्मोकोलोजी विभाग के हेड प्रो. शैलेन्द्र हाण्डू, डाॅ. बीपी कालरा, डाॅ.अनुपमा बहादुर, डाॅ. पूनम सिंह, डाॅ. सनोवर वसीम, डाॅ. मयंक प्रियदर्शी व डाॅ. विशाल कौशिक आदि मौजूद रहे।

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