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लौटती सांसों से जगी जीवन जीने की आस – 71 वर्षीय वृद्ध के दिल मे लगाया लीडलैस पेसमेकर – जोखिम उठाकर एम्स के चिकित्सकों ने हासिल की उपलब्धि – सांस लेने में तकलीफ के साथ बार-बार बेहोश होने की थी समस्या।

संशोधित प्रेस विज्ञप्ति

– लौटती सांसों से जगी जीवन जीने की आस
– 71 वर्षीय वृद्ध के दिल मे लगाया लीडलैस पेसमेकर
– जोखिम उठाकर एम्स के चिकित्सकों ने हासिल की उपलब्धि
– सांस लेने में तकलीफ के साथ बार-बार बेहोश होने की थी समस्या

एम्स ऋषिकेश
31 जनवरी, 2025

फूलती सांसों और बार-बार चक्कर आने की वजह से 71 साल के एक वृद्ध का जीवन संकट में आ गया।
इलाज के लिए कई अस्पतालों के चक्कर भी काटे लेकिन प्रत्येक दफा डाॅक्टरों के आगे उम्र का पड़ाव और बीमारी की गंभीरता आढ़े आ जाती।

ऐसे में एम्स ऋषिकेश के चिकित्सकों ने रोगी के दिल में बिना तार का (लीडलैस) पेसमेकर प्रत्यारोपित कर न केवल उसका जीवन लौटाने में कामयाबी पायी अपितु एम्स ऋषिकेश में पहली बार इस प्रकार की सर्जरी कर रिकाॅर्ड भी बना दिया है। रोगी अब स्वस्थ है और उसे एम्स से छुट्टी दे दी गयी है।

यह स्वयं में एक मिसाल से कम नहीं। एम्स के कार्डियोलाॅजिस्ट विशेषज्ञों की टीम के अनुभव और उम्र की अन्तिम दहलीज में खड़े 71 वर्षीय वृद्ध के हौसले ने एक नया रिकाॅर्ड बनाया है।

बिहार के पूर्वी चंपारण जिले में गोविन्दपुर का यह वृद्ध दूसरों के सहारे लड़खड़ाते कदमों से 9 जनवरी को एम्स ऋषिकेश पंहुचा था। संस्थान के कार्डियोलाॅजिस्ट विशेषज्ञ डाॅ. बरूण कुमार ने रोगी के स्वास्थ्य की विभिन्न जाचें की और पाया कि रोगी के दिल ने सही ढंग से काम करना बंद कर दिया है।

इस वजह से उसकी दिल की धड़कनें भी अत्यंन्त धीमी हो गयी हैं। रोगी को बार-बार चक्कर आने की शिकायत के साथ ही थकान व कमजोरी महसूस करना, सीने में दर्द और सांस लेने में तकलीफ होने की समस्या थी।

डाॅ. बरूण ने बताया कि रोगी को बचाने के लिए जरूरी था कि उसके हृदय में समय रहते मेस मेकर लगाकर उसके दिल को अतिरिक्त ताकत दी जाय। समस्या रोगी के उम्र को लेकर थी। उम्र ज्यादा होने के कारण ऐसे मामलों में सर्जरी करना अत्यन्त जोखिम भरा निर्णय होता है।
वहीं उन्होंने बताया कि इन हालातों में रोगी और उसके परिवार वालों की काउंसिलिंग कर उन्हें लीडलैस पेसमेकर लगाने की सलाह दी गयी और जोखिम उठाकर 19 जनवरी को रोगी के दिल में पेसमेकर प्रत्यारोपित कर दिया गया।

डाॅ. बरूण ने बताया कि यदि सर्जरी में विलंम्ब होता तो रोगी की मानसिक चेतना में परिवर्तन होने के अलावा बेहोशी के कारण नीचे गिरने पर उसे कभी भी कार्डियक डेथ होने का खतरा बना था।

सर्जरी करने वाली डाॅक्टरों की टीम में डाॅ0 बरूण कुमार के अलावा डाॅ. कनिका कुकरेजा, डॉ किशन, डॉ रूपेंद्र नाथ साहा और काॅर्डियोलाॅजी विभाग के डॉ आकाश आदि शामिल थे।

लीडलैस पेसमेकर के लाभ
कोई लीड नहीं होने से संक्रमण और जटिलताओं का कम खतरा, तेजी से रिकवरी के साथ न्यूनतम आक्रामक और सिंगल-चेंबर ब्रैडीकार्डिया वाले रोगियों के लिए उपयुक्त, छोटा चीरा, लंबी बैटरी लाइफ (10-15 वर्ष), जटिल पेसिंग आवश्यकताओं (एकल या दोहरे कक्ष) के लिए अधिक बहुमुखी और पल्स जनरेटर के लिए त्वचा के नीचे मात्र एक जेब की आवश्यकता।

’’ कार्डियोलाॅजी विभाग के डाॅक्टरों का यह कार्य प्रशंसनीय है। असामान्य धड़कन वाले हृदयरोगियों के लिए बिना तार वाले पेसमेकर को प्रत्यारोपित करना एक क्रांतिकारी इलाज है। पारंपरिक पेसमेकर्स के विपरीत यह छोटे उपकरण सीधे दिल में प्रत्यारोपित किए जाते हैं। हृदय रोगियों के बेहतर इलाज के लिए एम्स में विश्व स्तरीय तकनीक आधारित कैथ लेब की सुविधा भी है।

हृदय रोग से ग्रसित रोगियों को एम्स की इस सुविधा का लाभ उठाना चाहिए।’’
——— प्रो. मीनू सिंह, कार्यकारी निदेशक, एम्स ऋषिकेश।

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